गोर्की की जगह लेने वाला कोई नहीं रहा
-प्रेमचन्द
प्रेमचंद और गोर्की समकालीन लेखक थे। प्रेमचंद का गोर्की के साहित्य से परिचय अंग्रेजी माध्यम से हुआ और इस शताब्दी के तीसरे दशक में गोर्की की कृतियों के भारतीय भाषाओं में अनुवाद होने आरंभ हो गये। गोर्की के प्रति उनकी श्रद्धा का ज्ञान गोर्की के देहांत के बाद होता है, जब वे गोर्की के देहांत पर आयोजित शोक-सभा में पढ़ने के लिए, बीमारी के बावजूद, अपना लेख लिखने में लग जाते हैं।
शिवरानी देवी ने इस घटना का बड़ा यथार्थपूर्ण वर्णन किया है।
बनारस से प्रकाशित होने वाले दैनिक अख़बार `आज' कार्यालय में शोक-सभा आयोजित की गयी थी। प्रेमचंद को इसकी अध्यक्षता करनी थी और गार्की पर अपना लेख पढ़ना था। एक रात को शिवरानी देवी की आँख खुल गयी तो देखा कि प्रेमचंद जमीन पर बैठे गोर्की पर लेख लिख रहे हैं। इस पर शिवरानी बोली-
``आप यह क्या कर रहे हैं?''
प्रेमचंद, ``कुछ नहीं।''
शिवरानी,``नहीं, कुछ तो लिख रहे हैं।''
प्रेमचंद, ``परसों `आज' आफ़िस में गोर्की की मृत्यु पर मीटिंग होने वाली है''
शिवरानी, ``जब तबीयत ठीक नहीं तो भाषण कैसे लिखा जायेगा?''
प्रेमचंद बोले, ``जरूरी तो है। बिना लिखे काम नहीं चलेगा। अपनी खुशी से काम करने में आराम या तकलीफ का बोध नहीं होता। जिसको आदमी कर्त्तव्य समझ लेता है, उसके करने में मनुष्य को कुछ भी तकलीफ नहीं होती। इन कामों को आदमी सबसे ज्यादा जरूरी समझता है।''
शिवरानी बोली, ``यह मीटिंग है कैसी?''
प्रेमचंद बोले, ``शोक-सभा है।''
शिवरानी बोली, ``वह कौन से हिंदुस्तानी थे?''
प्रेमचंद बोले, ``यही तो हम लोगो की तंगदिली है। गोर्की इतना बड़ा लेखक था कि उसके विषय में जातीयता का सवाल ही नहीं उठता। लेखक हिंदुस्तानी या यूरोपियन नहीं देखा जाता। वह जो लिखेगा, उससे सभी को लाभ होता है?''
प्रेमचंद बोले, ``तुम गलती करती हो रानी! लेखक के पास होता ही क्या है, जिसे वह अलग-अलग बाँट दे। लेखक जो तपस्या करता है, उससे जनता का कल्याण होता है। वह अपने लिए कुछ भी नहीं करता।''
शिवरानी ने कहा, ``यहाँ वालों को तो पहले अपनों की पूजा करनी चाहिए। आगरे का कवि-सम्मेलन आपको याद नहीं रहा क्या? जब हरिऔध जी को भरी सभा में कुशब्द कहा गया था। आप ही उस पर बिगडे भी थे। और लोग तो चुप रह गये थे।''
प्रेमचंद गंभीर होकर बोले, ``इनमें लेखकों और पाठकों का दुर्भाग्य है, क्योंकि जब तक उनके दिलों में उनके प्रति श्रद्धा और प्रेम न हो तब उनके उपदेश वे ले ही कैसे सकते हैं?''
शिवरानी से इसी प्रकार बात करते-करते सवेरे के चार बज गये। शिवरानी ने देखा कि लिखते समय उनकी आँखों में आँसू थे।
प्रेमचंद, सुबह हुई तो शोक-सभा में जाने के लिए तैयार होने लगे। शिवरानी उन्हें कमजोरी के कारण रोकना चाहती थीं, परंतु प्रेमचंद की तबीयत बिना जाये मान नहीं रही थी। इस पर श्रीपतराय को उनके साथ भेजा, परन्तु प्रेमचंद अपनी अस्वस्थता के कारण भाषण पढ़ना तो दूर, खडे भी नहीं हो सके। इस पर उनका लिखित भाषण किसी अन्य व्यक्ति ने पढ़ा। प्रेमचंद घर लौटे तो सीढ़ियों से ऊपर न चढ़ा गया। ऊपर पहुँचकर चारपाई पर लेट गये। शिवरानी से बोले, ``गोर्की के मरने से मुझे बहुत दुख हुआ। मेरे दिल में यही आ रहा है कि गोर्की की जगह लेने वाला कोई नहीं रहा।''
प्रेमचंद इसके बाद कई दिनों तक गोर्की की चर्चा करते रहे। उनकी दृष्टि में गोर्की के समकक्ष कोई दूसरा लेखक नहीं था।
हमारा दुर्भाग्य यह है कि प्रेमचंद का गोर्की की शोक-सभा के लिए लिखा भाषण अभी तक अनुपलब्ध है। यह एक ऐसा महत्वपूर्ण दस्तावेज है जिसकी खोज अवश्य ही की जानी चाहिए।
( प्रस्तुति-
-डॉ॰ कमलकिशोर गोयनका)